
-जानिए क्या है 10 बजकर 18 मिनट का रहस्य
-क्यों बार-बार बदला गणतंत्र दिवस की परेड का स्थान
-पहली बार परेड में शामिल बग्घी कैसी थी
भारत 26 जनवरी 2023 को अपना 74वां गणतंत्र दिवस मनाएगा। पहली बार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु कर्तव्य पथ पर राष्ट्रीय ध्वज फहराएंगी। 26 जनवरी को पूरा देश हर्षोल्लास के साथ गणतंत्र दिवस मनाता है। यह दिन सभी भारतवासियों के लिए बेहद खास दिन होता है। सभी धर्मों, जाति और संप्रदाय के लोग आपसी बैर भूलकर एक साथ इस राष्ट्रीय पर्व को मनाते हैं। देश के इस खास दिन को और स्पेशल बनाने के लिए हर साल राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट से लेकर राष्ट्रपति भवन तक कर्तव्य पथ पर विशाल परेड और रैली का आयोजन किया जाता है। कर्तव्य पथ को पहले राजपथ के नाम से जाना जाता था, लेकिन सरकार ने इसका नाम बदलकर कर्तव्य पथ कर दिया।

गणतंत्र दिवस से जुड़ी कुछ रोचक और विशेष जानकारी आदित्यभारत की इस खास रिपोर्ट में…
दरअसल, 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ था। इसी के उपलक्ष्य में हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश के राष्ट्रपति राष्ट्रीय ध्वज को फहराते हैं। इसके बाद परेड निकाली जाती है। जिसमें भारतीय सेना के जवान हिस्सा लेते हैं।
पहली बार यहां निकली थी गणतंत्र दिवस परेड
26 जनवरी 1950 को पहला गणतंत्र दिवस समारोह इरविन स्टेडियम में मनाया गया था। जिसे आज नेशनल स्टेडियम के नाम से जाना जाता है। उस दौरान स्टेडियम की चारदीवारी नहीं थी। इरविन स्टेडियम से पुराना किला साफ दिखाई देता था।
1954 तक अलग-अलग जगहों पर मनाया गया गणतंत्र दिवस
साल 1954 तक गणतंत्र दिवस समारोह का आयोजन अलग-अलग जगह पर किया जाता रहा। गणतंत्र दिवस समारोह का आयोजन स्टेडियम, किंग्सवे (राजपथ), लालकिला और रामलीला मैदान में भी किया गया। हालांकि, साल 1955 से गणतंत्र दिवस समारोह के लिए राजपथ (कर्तव्य पथ) को चुना गया। जिसके बाद से ही हर साल यहां गणतंत्र दिवस का आयोजन किया जाता है। बता दें कि परेड की शुरूआत रायसिना हिल्स से होती है और वह राजपथ, इंडिया गेट से गुजरती हुई लालकिला तक जाती है।
15 हजार लोगों ने लिया था हिस्सा
बताया जाता है पहली गणतंत्र दिवस परेड को देखने के लिए स्टेडियम में करीब 15 हजार लोग मौजूद थे। इस परेड में सशस्त्र सेना के तीनों बलों ने भी हिस्सा लिया था। इसके अलावा सेना के सात बैंड भी गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल हुए थो। यह परंपरा आज भी कायम है।
मुख्य अतिथि बुलाने की परंपरा पहले गणतंत्र दिवस से है जारी
बता दें कि पहली बार जा गणतंत्र दिवस परेड का आयोजन किया गया था तो तब से ही मुख्य अतिथि बुलाने की परंपरा बनाई गई थी। ये परंपरा आज भी जारी है। गणतंत्र दिवस के मौके पर दूसरे देशों के राष्ट्रध्यक्षों को बुलाया जाता है। पहले गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति थे।
राष्ट्रगान के दौरान 21 तोपों की दी जाती है सलामी
ाताते चलें कि गणतंत्र दिवस समारोह में राष्ट्रगान के दौरान 21 तोपों की सलामी दी जाती है। यह सलामी राष्ट्रगान के शुरूआत से 52 सेकेंड तक होती है।
ऐसी है भारत के संविधान बनने की कहानी
इतिहासकारों की मानें तो 1929 में भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में नेशनल कांग्रेस ने ऐलान किया था कि अंग्रेजी सरकार 26 जनवरी 1930 तक भारत को डोमनियन स्टेट का दर्जा दे और इसी दिन पहली बार भारत में स्वतंत्रता दिवस को मनाया गया था। बता दें कि आजादी मिलने से पहले 26 जनवरी को ही स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते थे। पूर्ण स्वराज की मांग करने के बाद जब आजादी मिली तो बाद में 26 जनवरी 1950 को संविधान को लागू किया गया और इस दिन को गणतंत्र दिवस घोषित किया गया।

308 सदस्यों ने संविधान को दी मान्यता
हर देश में कार्य करने के लिए एक नियमावली होती है इसे अलग अलग देशों में अलग अलग नामों से जाना जाता है। भारत में इस नियमावली को संविधान के नाम से जानते हैं। भारत के संविधान को डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने तैयार किया था। उन्होंने संविधान का जो मसौदा तैयार किया था उसमें कई तरह के सुधार किए गए और बाद में एक कमेटी तैयार की गई जिसमें संविधान को लेकर चर्चा हुई। कमेटी में 308 सदस्य थे जिन्होंने 24 जनवरी 1950 के संविधान में लिखे गए कानून को मंजूर देते हुए दो कॉपियों पर हस्ताक्षर किए और इसके बाद 26 जनवरी को देश में इस संविधान को लागू कर दिया गया।
10 बजकर 18 मिनट का महत्व, पहली परेड में थे 3000 जवान-100 विमान
26 जनवरी 1950 की सुबह 10 बजकर 18 मिनट पर भारत गणतंत्र बना था। ठीक 6 मिनट बाद यानी 10 बजकर 24 मिनट बाद डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली। उन्हें तब के चीफ जस्टिस हीरालाल कनिया ने शपथ दिलाई थी। इसके बाद देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने हिंदी और अंग्रेजी में भाषण दिया था।
74 साल पहले आज ही के दिन गवर्नमेंट आॅफ इंडिया 1935 की जगह भारत का संविधान लागू हुआ था। वैसे तो भारत का संविधान बनाने का काम 26 नवंबर 1949 को पूरा हो गया था। संविधान सभा ने इसे मंजूर भी कर दिया था। लेकिन ऐसा कहा जाता है कि चूंकि 26 जनवरी 1930 को कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य का नारा दिया था। इसलिए दो महीने का इंतजार कर 26 जनवरी 1950 को देश के आखिरी गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी ने भारतीय गणतंत्र की घोषणा की थी।
आजादी से पहले ही तय हो गया था भारत का अपना संविधान होगा
18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद से ‘इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट’ पास हुआ। इससे ही भारत का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान बाना। इस एक्ट के तहत 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान ने और 15 अगस्त 1947 को भारत ने अपनी आजादी की घोषणा की। हालांकि, आजादी से एक साल पहले ही 9 दिसांर 1946 को तय हो गया था कि भारत का अपना संविधान होगा। इसके लिए संविधान सभा बनाई गई थी। 2 साल 11 महीने और 18 दिन तक चली बैठक के बाद भारत का संविधान बाना। 26 नवांर 1949 को संविधान सभा ने भारत के संविधान सभा को मंजूरी दी।
एक सप्ताह तक मनाया है राष्ट्रीय पर्व
आमतौर पर हमे लगता है कि गणतंत्र दिवस सिर्फ 26 जनवरी को होता है लेकिन ऐसा नहीं है। गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम एक सप्ताह तक चलता है और इसकी शुरूआत 24 जनवरी से हो जाती है। कार्यक्रम के पहले दिन बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। हालांकि इस साल गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम 23 जनवरी से शुरू हो रहा है क्योंकि इस दिन नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती होती है। 25 जनवरी को राष्ट्रपति देश के नाम अपना संबोधन देंगी और फिर अगले दिन पूरे देश में इस राष्ट्रीय पर्व का मुख्य कार्यक्रम आयोजित होगा।
शाम को निकली थी गणतंत्र दिवस की पहली परेड
अभी गणतंत्र दिवस की परेड सुबह निकलती है, लेकिन पहली परेड शाम को निकली थी। 26 जनवरी 1950 की दोपहर 2 बजकर 30 मिनट पर राजेंद्र प्रसाद बग्घी में सवार होकर राष्ट्रपति भवन से निकले थे। कनॉट प्लेस जैसे इलाकों से होते हुए राष्ट्रपति 3 बजकर 45 मिनट पर नेशनल स्टेडियम पहुंचे। तब नेशनल स्टेडियम को इरविन स्टेडियम कहा जाता था। राष्ट्रपति जिस बग्घी में सवार थे, वो उस वक्त 35 साल पुरानी थी। 6 आस्ट्रेलियाई घोड़े उस बग्घी को खींच रहे थे। परेड स्थल पर राष्ट्रपति को शाम के वक्त 31 तोपों की सलामी दे गई थी। 1950 में हुई पहली परेड में जनता को भी शामिल किया गया था। पहली परेड में 3 हजार जवान और 100 विमान हिस्सा थे।