
ब्राह्म्ण जाति के कुल गुरु भगवान परशुराम की जयंती हिन्दू पंचांग के वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। इसे “परशुराम द्वादशी” भी कहा जाता है। अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन दिये गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता।
खासकर ब्राह्मणों के लिए इस दिन का कितना महत्व है इसका अंदाजा इस बात से भी लगता है कि कुछ राज्यों में इस दिन सार्वजनिक अवकाश भी होता है।
कब है परशुराम जयंती
परशुराम जयंती 26 अप्रैल को है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रति वर्ष अक्षय तृतीया के दिन होती है। इस साल 26 अप्रैल को अक्षय तृतीया है और इसी दिन परशुराम जयंती भी पड़ेगी।
परशुराम जयंती का पूजा मुहूर्त
तृतीया तिथि प्रारंभ: सुबह 11 बजकर 51 मिनट से (25 अप्रैल 2020)
तृतीया तिथि समापन: दोपहर 1 बजकर 22 मिनट तक (26 अप्रैल 2020)
परशुराम जंयती का महत्व
भगवान परशुराम का जन्म बैशाख मास की शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम पहर में हुआ था। इनकी माता का रेणुका और पिता जमदग्नि थे। जिस समय भगवान परशुराम जी का जन्म हुआ था। उस समय पर दुष्ट राजाओं से लोग अत्याधिक परेशान थे। उन्हीं में से एक दुष्ट राजा ने भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि वध कर दिया। जिससे क्रोधित होकर भगवान परशुराम ने 21 बार पृथ्वीं को क्षत्रिय विहिन कर दिया था। भगवान परशुराम को परशु भगवान शिव ने दिया था।
जिसकी वजह से ही इन्हें परशुराम के नाम से जाना जाता है। भगवान परशुराम जी की पूजा करने से साहस में वृद्धि, भय से मुक्ति मिलती है। भगवान परशुराम को श्री हरि विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। इनका जन्म पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ था और इन्हें भगवान शिव ने परशु दिया था। जिसके कारण ही इन्हें परशुराम के नाम से जाना जाता है।
परशुराम जयंती पूजा विधि
- सबसे पहले परशुराम जयंती के दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद एक चौकी पर परशुराम जी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
- इसके बाद हाथ में जल लेकर मम ब्रह्मात्व प्राप्तिकामनया परशुराम पूजनमंह करिष्ये मंत्र का जाप करें।
- मंत्र जाप करने के बाद हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर परशुराम जी के चरणों में छोड़ दें।
- इसके बाद सूर्यास्त तक मौन धारण करें और शाम के समय पुन: पूजा करें।
- पूजा में भगवान परशुराम को नैवेद्य अर्पित करें और जमदग्रिसुतो वीर क्षत्रियांतकर प्रभो गृहणार्घ्य मया दंत कृपा परमेश्वर मंत्र का जाप करें।
- इसके बाद भगवान परशुराम की कथा पढ़ें या सुने
- कथा पढ़ने या सुनने के बाद भगवान परशुराम को मिठाई का भोग लगाएं।
- इसके बाद भगवान परशुराम की धूप व दीप से आरती उतारें
- अंत में भगवान परशुराम से प्रार्थना करें कि वह आपको साहस प्रदान करें और आपको सभी प्रकार के भय से मुक्ति दें।
परशुराम जंयती की कथा
विष्णु पुराण के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ था। जिसे भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा किया गया था। इस यज्ञ के संपूर्ण होने पर देवराज इंद्र ने महर्षि जमदग्नि और पत्नी रेणुका को दर्शन दिए और रेणुका के गर्भ में एक बालक को डाल दिया। इसके बाद वैशाख शुक्ल तृतीया को पुर्नवसु नक्षत्र में एक बालक का जन्म हुआ। जिसे भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। यह बालक अत्यंत ही पराक्रमी और तेजस्वीं था।
पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जामदग्न्य इसके अलावा भगवान शिव से परशु नाम का शास्त्र प्राप्त करने के कारण इन्हें परशुराम नाम प्राप्त हुआ। परशुराम जी ने इक्कीस बार पृथ्वीं को क्षत्रिय विहिन किया था। क्योंकि जिस समय पृथ्वीं पर परशुराम जी का जन्म हुआ था। उस समय अत्याचारी राजाओं का राज था।
एक बार सहस्त्रबाहु अर्जुन अपनी पूरी सेना के साथ जमदग्नि के आश्रम में आया और जिसकी पूरी सेना को जमदग्नि ऋषि ने भोजन कराया। जब राजा ने इसका कारण जानना चाहा तो ऋषि ने बताया कि यह कामधेनु गाय के पूरा हो पाया। उस गाय को पाने कि लालसा में सहस्त्रबाहु अर्जुन ने जमदग्नि और उनकी पत्नी का वध कर दिया। जिसके बाद परशुराम ने सभी क्षत्रियों का वध कर दिया था।