हरियाली तीज आज: जानें महत्व और पूजा विधि

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज का पर्व मनाया जाता है। कुछ स्थानों पर इसे मधुश्रवा तीज भी कहते हैं। इस पर्व को मां पार्वती और शिव के मिलन की याद में मनाया जाता है। इस बार हरियाली तीज का पर्व 23 जुलाई, गुरुवार को है।

इस दिन महिलाएं मां पार्वती की पूजा करती हैं। नवविवाहिताएं अपने पीहर आकर यह त्योहार मनाती हैं। इस दिन व्रत रखा जाता है तथा विशेष श्रंगार किया जाता है। राजस्थान में महिलाएं लहरिया नामक ओढ़नी पहनती हैं। हाथों में मेंहदी लगाती हैं और घर में पकवान बनाए जाते हैं।

युवतियां इस दिन झूला झूलती हैं और सावन के मधुर गीत गाती हैं। राजस्थान में घूमर आदि विशेष नृत्य करने की परंपरा भी है। राजस्थान के जयपुर नगर में इस दिन तीज माता की सवारी निकाली जाती है और मेला भी लगता है।

हरियाली तीज की पूजा विधि

शिव पुराण के अनुसार हरियाली तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था इसलिए सुहागन स्त्रियों के लिए इस व्रत की बड़ी महिमा है। इस दिन महिलाएं महादेव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं।

  • इस दिन साफ-सफाई कर घर को तोरण-मंडप से सजायें। मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, भगवान गणेश और माता पार्वती की प्रतिमा बनाएं और इसे चौकी पर स्थापित करें।
  • मिट्टी की प्रतिमा बनाने के बाद देवताओं का आह्वान करते हुए षोडशोपचार पूजन करें।
  • हरियाली तीज व्रत का पूजन रातभर चलता है। इस दौरान महिलाएं जागरण और कीर्तन भी करती हैं।
  • इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके निर्जला व्रत रखती हैं और पूरी विधि-विधान से मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं।

हरियाली तीज पर होने वाली परंपरा

  • नवविवाहित लड़कियों के लिए विवाह के बाद पड़ने वाले पहले सावन के त्यौहार का विशेष महत्व होता है। ज्यादातर जगहों पर हरियाली तीज के मौके पर लड़कियों को ससुराल से मायके बुला लिया जाता है।
  • इस दिन मेहंदी लगाने का विशेष महत्व है। इस दिन पैरों में आलता भी लगाया जाता है। इसे महिलाओं की सुहाग की निशानी माना जाता है।
  • हरियाली तीज पर सुहागिन स्त्रियां सास के पांव छूकर उन्हें सुहागी देती हैं।
  • इस दिन महिलाएं श्रृंगार और नए वस्त्र पहनकर मां पार्वती की पूजा करती हैं।
  • अच्छे वर की मनोकामना के लिए इस दिन कुंवारी कन्याएं भी व्रत रखती हैं।

हरियाली तीज का पौराणिक महत्व

शिव पुराण के अनुसार इसी दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। इस कड़ी तपस्या और 108वें जन्म के बाद माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया।

मान्यता है कि श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही भगवान शंकर ने माता पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। तभी से भगवान शिव और माता पार्वती ने इस दिन को सुहागन स्त्रियों के लिए सौभाग्य का दिन होने का वरदान दिया।

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