
इंदौर। पेसा एक्ट के तहत वनवासियों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के सकारात्मक सामने आने लगे हैं। इसका ताजा उदाहरण खंडवा जिले की खालवा तहसील के 4 वनवासी गांवों में देखने को मिल रहा है। यहां के ग्रामीणों ने ग्राम सभा के जरिए अपनी स्वयं की समिति बनाई और बीड़ी व्यापारियों से अनुबंध किया। बीड़ी व्यापारी ने फिलहाल इनकी मजदूरी का पैसा समिति के खाते में डाल दिया है जल्दी ही लाभांश का पैसा भी मजदूरों के खाते में आने लगेगा। वन विभाग के अमले ने इसमें सेतु का काम किया इस पूरी प्रक्रिया में न तो कोई विचोलियां है और ना ही कोई अन्य अडंगा।
वनवासी-वनांचल में रहने वाला वनवासी भी अब व्यापारी बन गया है। वह अपनी उपज का दाम खुद तय कर रहा है, बल्कि बड़े व्यापारियों से मोलभाव भी कर रहा है। पेसा एक्ट लागू होने के बाद अधिकार बढ़े तो आदिवासी बहुल क्षेत्रों में बदलाव देखने को मिल रहे हैं। तेंदूपत्ता संग्रहण कर अब सीधे और जल्दी मुनाफा भी इनके हिस्से आएगा।
खंडवा जिले के आदिवासी बहुल खालवा विकासखंड के सुदूर ग्राम झारीखेड़ा, सोनपुरा, अंबापाट, ढकोची के ग्रामीणों ने इस बार सामूहिक निर्णय लिया। तेंदूपत्ता का संग्रहण करेंगे और सीधे बड़े व्यापारी को बेचेंगे। इसके लिए समितियों का गठन किया गया। बैंक में खाता खुलवाया और व्यापारियों से सीधा सौदा कर मुनाफा कमाया। पहले वन विभाग के माध्यम से पहले संग्रहण की राशि मिलती थी, फिर बोनस के लिए इंतजार करना पड़ता था। इन समितियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वनवासी कहते हैं कि पेसा एक्ट की वजह से ये मजबूती आई है।
पहले मुख्य भूमिका में रहने वाला वन विभाग अब तेंदूपत्ता संग्राहकों और व्यापारियों के बीच सेतु का काम कर रहा है। संग्राहकों की बैठकें लेकर उन्हें तकनीकी पहलुओं की जानकारी दी। खंडवा जिले के खालवा में बड़ी मात्रा में तेंदूपत्ता होता है। इसलिए यहां के चार प्रमुख वनग्रामों में समितियों का गठन किया गया। इससे तेंदूपत्ता का संग्रहण करने वाले आदिवासी खुद व्यापारी की भूमिका में आ गए।
खंडवा जिले में इस बार 28 हजार 500 मानक बोरा का लक्ष्य रखा गया था, जिसके मुकाबले 27 हजार 500 मानक बोरा का लक्ष्य हासिल किया गया है। मार्च और अप्रैल में मौसम खराब होने की वजह से तेंदूपत्ता पर असर पड़ने की वजह से ये स्थिति बनी लेकिन वनवासियों की समिति ने लगभग लक्ष्य को पूरा कर लिया है।